Life Begin On Earth : कैसे हुई थी पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत? जानकार हो जाएंगे हैरान

Life Begin On Earth : हम इंसान आज कितने आधुनिक बन चुके हैं, हम धरती के बाहर जा सकते हैं, अंतरिक्ष में करोड़ों प्रकाश वर्ष दूर तक देख सकते हैं, हमारे पास विज्ञान है जो हमें हमारे प्रश्नों के उत्तर देता है। वैज्ञानिक डेटा के जरिए हमने हमारे अस्तित्व का भी काफी हद तक सही अनुमान लगाया है। पृथ्वी जो हमारा घर है, जहां हम मानवों ने कई पीढ़ियों बिताई हैं, जिसने कई करोड़ों सालों से जीवन को धरती पर आश्रय दिया है और आज भी देता आ रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी पर जीवों के करीब 87 लाख प्रजातियां रहती हैं। जिसमें से केवल 15% प्रजातियों को ही हमने आज तक खोजा है। लेकिन आखिरकार ये सभी जानवर कहां से आए थे? आखिरकार धरती पर जीवन की शुरुआत कैसे हुई थी? इसे जानने के लिए हमें समय में पीछे जाना होगा, उस समय पर जब धरती अपनी शुरुआती अवस्था में थी। तो चलिए, आज से करीब साड़े चार अरब साल पीछे।

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पृथ्वी पर जीवन की शुरुवात कैसे हुई थी? (How did life begin on Earth?)

How did life begin on Earth?

आज से करीब साड़े चार अरब साल पहले, एक विशाल चट्टान का एक बेनाम तारा धरती के आसपास चक्कर लगा रहा था। इस चट्टान का गोला पिघले हुए लावा से बना था, और उस पर जीवन का कोई निशान नहीं था। उस समय पृथ्वी पर आकाश से लगातार छोटी-छोटी चटानों की बरसात हो रही थी, जो काफी लंबे समय तक जारी रही।

बाद में, इस विशाल चट्टान का एक गोला एक ग्रह के रूप में रूपांतरित हो गया, और इस ग्रह का अपना चांद भी बन गया। यही वह ग्रह है जहां हम आज रहते हैं। उस समय पृथ्वी का तापमान बहुत अधिक था। थोड़ी देर बाद ही, हमारे ग्रह का तापमान थोड़ा सा ठंडा हो गया और इस पर एक ठोस सतह बन गई।

लगभग 3.9 अरब साल पहले, फिर से आग के गोलों की बारिश हुई, जिसे हम “द लेट हैवी बॉम्बार्डमेंट” कहते हैं। उस समय पृथ्वी पर छोटी चटानों के साथ-साथ उल्कापिंड भी बरसे। रोजाना, हजारों के संख्या में उल्कापिंड पृथ्वी पर गिर रहे थे, जो कुछ विशेष वस्तुओं को साथ लाए थे।

उनमें जमी हुई बर्फ के क्रिस्टल्स थे, जिनसे समुद्रों का निर्माण हुआ और पृथ्वी के वातावरण में नाइट्रोजन गैस भी था। हालांकि, परिस्थितियाँ जीवन के लिए अभी भी उपयुक्त नहीं थीं। पृथ्वी का वायुमंडल पूरी तरह से जहरीले गैसों से भरा हुआ था, और यहां वायो मंडल में ऑक्सीजन भी नहीं था। धरती चारों ओर समुद्र से घिरी थी।

यह पिंड अपने साथ खनीच, यानि मिनरल्स लेकर आये थे। साथ ही इन्होंने  कार्बन, प्रोटीन, और एमिनो अमीनो एसिड का भी अंतरिक्ष से समुद्र के गहराइयों तक  पहुंचने का काम किया | परन्तु यहाँ समुद्र की गहराइयों में तापमान बहुत कम था। यहाँ सूर्य की रोशनी पहुँच ही नहीं सकती थी, लेकिन यहाँ समुद्र की घिराई में भी चोटे-चोटे प्राकृतिक चिमनीज थे। जो पानी को घिराई में भी गर्म रख रहे थे। और यहीं पर जीवन का पहला बीज बन पा हम यह नहीं जानते हैं कि ऐसा कैसे हुआ था।

लेकिन किसी प्रकार से यहीं पर उन सारे मिनरल्स और केमिकल्स ने आपस में अभिक्रिया करके जीवन का बीज बोया। और यहां जन्म हुआ पहले एककोशिकिय जीवों का। ये एक प्रकार के बैक्टरिया थे, जो समुद्र में बहुती तेजी से बढ़ने लगे। अब ये पानी पूरी तरह से इन सुक्षम एक कोशिके जीवों से भर गया था। कई करोड़ साल बाद, यानी आज से करीब साड़े तीन अरब साल पहले, समुद्र के अंदर इन बैक्टरियाओं के संख्या इतनी बढ़ गई थी कि ये आपस में जूड़ कर इस प्रकार के पत्थरों जैसी संग्रशनाओं में बदल गए थे, जिसे कहा जाता है स्ट्रोमेटोलाइट्स।

ये एक-एक चटान अपने आप में बैक्टरियाओं की एक पूरी बस्ती थी। ये बैक्टरिया सूरज की रोशनी को भोजन में बदलते थे, और इस प्रक्रिया को हम बहुत अच्छी तरह से जानते हैं, जिसे प्रकास संश्लेषण के नाम से जाना जाता है। इसी प्रक्रिया में, ये एक उत्पाद, एक बेहद महत्वपूर्ण चीज, निकालते थे – एक गैस, ऑक्सीजन। इन सुक्ष्म जीवों ने धरती पर एक सबसे अनमोल चीज का निर्माण किया। जो धरती पर जीवन के लिए सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण था। और वास्तव में, इसके बिना, धरती पर कोई जीव जीवित नहीं रह पाता।

करीब दो अरब सालों तक पृथ्वी के वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा लगातार बढ़ती रही। आज से करीब डीर अरब साल पहले, पृथ्वी पर अभी किसी प्रकार का  अनुकूल जीवन विकसित नहीं हुआ था, और नहीं पृथ्वी पर इतने बड़े-बड़े महाद्वीप थे। पृथ्वी पर केवल छोटे-छोटे द्वीप थे जो चारों तरफ से पानी से घिरे थे, मगर अब पृथ्वी के क्रस्ट में हलचल होने लगी। इससे पृथ्वी की सतह पर कई सारे टेक्टोनिक प्लेट्स में टूट गई। फिर इन प्लेट्स में मूवमेंट के कारण, ये सभी छोटे-छोटे द्वीप आपस में जुड़ गए और एक सूपर-कॉन्टिनेंट का निर्माण हुआ, जिसका नाम था “रोडिनिया”। 

इस समय पर, पृथ्वी का तापमान 30 डिग्री सेल्सियस था, और पृथ्वी का एक दिन 18 घंटों का था। मगर अब समय के साथ, यहां परिस्थितियाँ बदलने लगीं। आज से करीब 75 करोड़ साल पहले, पृथ्वी की समृद्धि की रेखा बदल रही थी। पृथ्वी का सूपर-कॉन्टिनेंट अब दो भागों में टूट गया, और पृथ्वी के नीचे का लावा ज्वालामुखी विस्फोट के साथ निकलने लगा। इन विस्फोट के कारण, पृथ्वी में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा काफी बढ़ गई।

अब धरती का आसमान इन कार्बन डाइक्साइड के घने बादलों से घिर चुका था। इन बादलों से लगातार अमलिय वर्षा, अर्थात् एसिड रेंस, होने लगी। इससे धरती के वातावरण में अधिकतर कार्बन डाइक्साइड धरती के चट्टानों पर कार्बन के मोटे-मोटे परतों के रूप में जमने लगे, जो इस पारिस के पानी के साथ बरस रहे। इससे वायुमंडल में कार्बन डाइक्साइड की मात्रा में भारी कमी हो गई, और अब धरती का वायुमंडल सूरज की गर्मी को रोकने के काबिल नहीं रह सका। इससे धरती का तापमान बहुत ही तेजी से कम होने लगा और धरती पर पहला युग, यानी आइस एज, की शुरुआत हुई। यह आइस एज अब तक का सबसे लंबा आइस युग था |

लेकिन यह भी हमेशा के लिए नहीं रहने वाला था। समय के साथ, वायुमंडल में कार्बन डाइक्साइड की मात्रा फिर से बढ़ने लगी, और पृथ्वी का तापमान फिर से बढ़ने लगा। इससे धरती पर जमे हुए बर्फ धीरे-धीरे पूरी तरह से गलने लगा, और पृथ्वी फिर से सामान्य रूप में आने लगी। लेकिन उन सिंगल सेल बैक्टीरिया का क्या हुआ, जो आइस एज के आने से पहले समुद्र में थे? आज से करीब 54 करोड़ साल पहले, अब धरती का सारा बर्फ पूरी तरह से पिघल चुका था।

समुद्र के अंदर जाने पर हमें एक बिल्कुल नई दुनिया देखने को मिलती है। ऑक्सीजन के उप्रंभ में, एकोशिकीय जीव कई अन्य रूपों में विकसित हो चुके थे। चारों तरफ समुद्री पौधे, अजीबोगरीब छोटे-छोटे समुद्री जीव और समुद्री दानव एनोमिला कैरिश थे। यह सब जटिल बहुकोशिकीय जीवों की नई प्रजातियां थीं जो एककोशिकीय सूक्ष्म जीवों से विकसित हुई थीं।

पिकाया नामक जीव केवल 5 सेंटीमीटर लंबे थे, लेकिन उन्होंने अपने शरीर में कुछ बहुत ही खास विकसित कर लिया था जो आगे चलकर हमारे शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग बनने वाला था। यह पहले जीव थे जिनके पास रीढ़ की हड्डी थी और इन्हीं से विकसित होकर यह खासियत हमें भी मिलने वाली थी।

आज से करीब 46 करोड़ साल पहले, धरती कुछ हद तक जानी-पहचानी हो गई थी। धरती का सुपर कॉन्टिनेंट अब और भी कई भागों में टूट गया था, परंतु अभी यहां जमीन पर रहने वाले जीव नहीं आए थे और धरती पर पेड़-पौधे भी नहीं हो गए थे। ऐसा क्यों था?

दरअसल, ऐसा सूरज से आने वाली किरणों के कारण हो रहा था। पर अब धरती के वायुमंडल में एक नए परत का निर्माण हो रहा था जिसे आज हम ओजोन लेयर कहते हैं। वायुमंडल के ऑक्सीजन सूरज के अल्ट्रा वायलेट किरणों को सोखकर ओजोन गैस में बदलने लगे थे। इसने धरती के चारों ओर एक चादर का निर्माण किया जो हमें सूरज की अल्ट्रा वायलेट रेडिएशन से आज भी बचाता है। इसके कारण अब धरती की सतह पर नन्हे सैवाल पल-फूल सके और ये ही धरती के पहले लैंड प्लांट्स बने।

समुद्र में रहने वाली मछली टिक्टैलिक ने पहली बार समुद्र से बाहर आने का निर्णय लिया। इसने अपने फिंस का इस्तेमाल पैरों के रूप में किया और समय के साथ ये जमीन पर ज़्यादा देर तक रहने लगा। जिससे इसके अंग काफी विकसित हो गए और अब ये पूरी तरह जमीन पर रहने वाले जीव बन गए। ये ही वो जीव थे जो आगे चलकर डायनासोर, पक्षी, स्तनधारी और अंत में इंसानों में विकसित होने वाले थे।

यहां से एक नए प्रजाति की शुरुआत हुई, लेकिन अब धरती का बुरा वक्त आने वाला था। समय के साथ जीवों की विकास प्रक्रिया जारी रही, लेकिन साथ ही धरती का वातावरण भी बहुत तेज़ी से बदल रहा था। एक बार फिर से ज्वालामुखी विस्फोटों के कारण धरती का तापमान बहुत ही बढ़ गया। इससे धरती पर बहुत बड़ा अकाल पड़ गया। इस अकाल में लगभग सारे पेड़ सूख गए और धरती पर जीवों के कुल 95% आबादी साफ हो गई।

इस अकाल में कुछ जीव ही जिंदा बच पाए। धरती की रूपरेखा काफी हद तक बदल गई थी। ज्वालामुखी विस्फोटों से नए भूभागों का निर्माण हुआ जिन्होंने आपस में मिलकर एक सुपर कॉन्टिनेंट का निर्माण किया जिसका नाम था पेंजिया। अब धरती अंतरिक्ष से काफी हद तक आज की जैसी दिखाई देती थी। इतने बड़े अकाल के गुजरने के बाद धरती वापस से सामान्य हो गई। सतह पर फिर से नए पेड़-पौधे उगने लगे और धरती पर जो 5% जीव बच पाए थे वे अब विकसित हो चुके थे और एक बिल्कुल नए प्रजाति का जन्म हुआ था जो आने वाले समय में धरती पर अपना शासन चलाने वाला था।

वे थे डायनासोर। डायनासोर असल में उनही 5% रेंगने वाले जीवों से विकसित हुए थे जो उस अकाल में खुद को किसी प्रकार से बचा पाए थे। डायनासोर के भी कई प्रजातियां थीं। कुछ शाकाहारी थे तो कुछ मांसाहारी। कुछ डायनासोर बहुत शांत स्वभाव के थे तो कुछ बहुत हिंसक। डायनासोर ने भी काफी लंबे समय तक धरती पर राज किया। करीब 11 करोड़ साल तक ये धरती पर फल-फूल रहे थे। पर इसके बाद क्या हुआ? सारे डायनासोर कहां बिलुप्त हो गए? और इंसान कहां से आए? ये हम जानेंगे अगले एपिसोड में।

तो आज के लिए बस इतना ही। अगर आपको  इसका दूसरा भाग चाहिए और अगर आपको यह काफी ज्यादा पसंद आया मनोरंजन लगा और आपको इससे कुछ सीखने को मिला तो आप नीचे कमेंट जरुर करें और अगला आपको किस टॉपिक पर ऐसा ब्लॉग पोस्ट चाहिए कृपया नीचे कमेंट में अवश्य बताएं हम उसे पर पूरी रिसर्च करके आपके सामने आसान शब्दों में और मनोरंजक तरीके से पेश करेंगे |

अगर आप यह जाना चाहते हैं कि पृथ्वी से डायनासोर का अंत और इंसानों का जन्म किस प्रकार हुआ तो इस पर मैंने एक विशेष ब्लॉक पोस्ट लिखा हुआ है जिससे आप पढ़ सकते हैं – आखिर कैसे हुआ डायनासोर का अंत और इंसानों का जन्म जानिए पूरा इतिहास

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1 thought on “Life Begin On Earth : कैसे हुई थी पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत? जानकार हो जाएंगे हैरान”

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